...

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गुल्लक
आज वही पुरानी यादें ले के
खुशियों का पिटारा खोला है
हर घर में रहती है खुशियाँ
एक ख्वाब का गुल्लक तोडा है
थोड़े थोड़े कर के हम ने
जिंदगी से नाता जोड़ा है
कुछ घाव पे मरहम लगा के
जख्मों को छुपा रखा है
मेरी मासुमियत देखी है जिसने
उसने बार बार मुझसे पूछा है
कहाँ छोड़ आये खुद को
खुशी के गुल्लक ने पूछा है

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