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हाँ मैं अब भी, वहीं छोटा सा मकान रखता हूँ !!
हाँ मैं अब भी, वहीं छोटा सा मकान रखता हूँ,
और वही नुक्कड़ वाली दुकान की पहचान रखता हूँ!

मेरी तरक्की, चेहरे की सिलवटों में हुई है बस,
खुद की रसोई में फीका पकवान रखता हूँ!

सादे कपड़े पहन, चाबियों को ले काम पे जाता,
चेहरे पर आने नही देता, पर आत्मा पर थोड़ी थकान रखता हूं !

जेब ढीली है और घरवालों की अधूरी ख्वाइशें,
कोशिशें सफल हों या असफल, इरादों में ऊंची उड़ान रखता हूँ !

#PoeticEra #Writco #Life
© Alfaaz_The Unleashed