...

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सृष्टि तुम्हारी
#EnigmaticUniverse
इस अंतरिक्ष में
सितारों के आंचल से लिपटी
वैभव किरीट पहन
चमकती हुई ओ प्रकृति
तुम्हें मैं अपने शब्द बंधनों से कैसे बांधूं
एक ही क्षण में चमक, तिमिर
धारण करती अनुपम
व्योम तारे की गाथा सी धधकती
शुभ्रा वैभवी शब्द माला तुझको पहनाए कौन
निशब्द शब्द नर्तन कर रहे
जगा रही, व्यग्रता की धारा में, बहा रही
सोच, सिमट रही, इक कण मात्र मैं
असीम विस्तार संसार की
ओ प्रकृति देख,
मिट जाती हृदय से हलचलें
देख रहा तुम्हारी स्वर्णक्षरित भाव भंगिमाएं
कह रहा स्वयं से
किस पराकाष्ठा में चढ़
श्रृजीत हुई थी सृष्टि तुम्हारी ....।

© सुशील पवार