तेरे क़दमों की धूल
तुम्हें अपना समझा क्या ये भूल थी ।
मोहब्बत न मेरे क्या अनुकूल थी ।।
जिसे मैंने चूमा था अनजाने में ।
क़दमों की तेरे क्या वो धूल थी ।।
मुक़द्दर में कांटे थे कांटे मिले ।
वो कली थी चमन की न ही फूल थी ।।
मोहब्बत न मेरे क्या अनुकूल थी ।।
जिसे मैंने चूमा था अनजाने में ।
क़दमों की तेरे क्या वो धूल थी ।।
मुक़द्दर में कांटे थे कांटे मिले ।
वो कली थी चमन की न ही फूल थी ।।
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