धूल...! 📝
जब हमें दिखाई नहीं देती
पता नहीं कहाँ रहती है उस समय
और जब हम एक धुली हुई सुबह को
जो खुलती है हमारे बीच
जैसेकि एक पत्र हो
उसके किसी बे-पढ़े वाक्य को छूने पर
हमारी उँगली से चिपक जाती है
यह कैसे समय में रह रहे हैं हम
कि धूल सने काँच पर
हमारे संवेदनशील स्पर्श
हमारी उधेड़बुन
हमारे...
पता नहीं कहाँ रहती है उस समय
और जब हम एक धुली हुई सुबह को
जो खुलती है हमारे बीच
जैसेकि एक पत्र हो
उसके किसी बे-पढ़े वाक्य को छूने पर
हमारी उँगली से चिपक जाती है
यह कैसे समय में रह रहे हैं हम
कि धूल सने काँच पर
हमारे संवेदनशील स्पर्श
हमारी उधेड़बुन
हमारे...