अकेला मन
एक तड़प तन से मन को हिला जाती है,
जब जब तेरे न होने का आभास कराती है।
सुनेपन की खामोशी क्यो डराती है, जब जब तेरे न होने की खयाल आती है।
जिंदा होना ही काफी नही इस तन का, रूह भी जरूरी हो जाती है।
सोच के अकेला इस जहांन में तेरे बिन, मेरी नब्ज़ थम जाती है।
माना...
जब जब तेरे न होने का आभास कराती है।
सुनेपन की खामोशी क्यो डराती है, जब जब तेरे न होने की खयाल आती है।
जिंदा होना ही काफी नही इस तन का, रूह भी जरूरी हो जाती है।
सोच के अकेला इस जहांन में तेरे बिन, मेरी नब्ज़ थम जाती है।
माना...