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“हो सके तो इसे मेरा आख़िरी जनम रखना”
चाहे मुझे पत्थर बनाना
किसी निर्जन स्थान पर रख देना
या कि मुझे एक वृक्ष बनाना
किसी घने जंगल में उगा देना
लेकिन अब मनुज न बनाना
हो सके तो इसे मेरा आख़िरी जनम रखना

चाहे मुझे एक छोटी नदी बनाना
चुपचाप समंदर में बहा देना
या कि मुझे एक छोटी चिड़िया बनाना
किसी दूसरे गाँव मुझे उड़ा देना
लेकिन अब मनुज न बनाना
हो सके तो इसे मेरा आख़िरी जनम रखना

चाहे मुझे कोई फूल बनाना
किसी भी डाली पर खिला देना
या फिर मुझे किताब बनाना
पुस्तकों में हज़ार सजा देना
लेकिन अब मनुज न बनाना
हो सके तो इसे मेरा आख़िरी जनम रखना

चाहे एक सुंदर तितली बनाना
जीवन के दिन थोड़े रखना
या कि दिए की लौ बनाना
सीख सकूं प्रकाश भरना
लेकिन अब मनुज न बनाना
हो सके तो इसे मेरा आख़िरी जनम रखना

चाहे रात का सितारा बनाना
दिन में ओझल कर देना
कुछ न सही हवा का झोंका बनाना
प्रियतम की गली बहा देना
लेकिन प्रभु अब मनुज न बनाना
हो सके तो इसे मेरा आख़िरी जनम रखना

© ढलती_साँझ