...

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ek aam insaan......
एक आम इंसान...
मैं क्या हूँ समझाऊँ कैसे, क्या कर सकता हूँ बतलाऊँ कैसे...
मुझमें कितनी स्किल है ये बताना मुश्किल है,
कोई साथ नहीं मेरे सब पैसों में अवेलेबल हैं,
कुछ करके मैं दिखलाऊँ कैसे घर में नहीं मेरे इतने पैसे,
अमीर बाप के बिगड़े शहजादे जब कुछ अच्छा सा कर जाते,
लोग खुश होते और तालियाँ बजाते पर वो सारे ये नहीं देख पाते,
मुझ जैसे लोग जो कुछ भी कर सकते हैं,
वो तो ये लोग कभी सोच भी नहीं सकते हैं,
दूसरों से करवाते हैं और खुदके नाम पर रखते हैं,
पर फिर भी लोग इन्हीं की तारीफें बकते हैं,
तारीफे काबिल तो यहाँ वहाँ भटकते हैं,
हताश होकर फिर वो दारू में बहकते हैं,
जवानी की उम्र में बूढ़ों जैसा थकते हैं,
गलियों के कुत्ते भी इनके ऊपर भौंकते हैं,
फिर जैसे जैसे दिन बीतते हैं आशाओं के दीप सूखते हैं,
ये पूरी तरह टूटते हैं और इस तरह से जुगाड़ वाले जीतते हैं,
एक बार फिर ये नए सपने देखते हैं,
कोशिशों और उम्मीदों से फिर उन्हें सींचते हैं,
शरीर साथ नहीं देता फिर भी उसे खींचते हैं,
घर हो या बाहर सब पर ही खीझते हैं,
छोटी छोटी खुशी पर हद से ज़्यादा रीझते हैं,
और कभी निराश होकर पागलों सा चीखते हैं,
कभी कभी तो ये दूसरों के गम में पसीजते हैं,
और कभी मजबूरी में आकर दूसरों को लूटना सीखते हैं,
और फिर यही इनकी दिनचर्या का हिस्सा बनता है,
घर का खर्चा चलता नहीं चलाना पड़ता है,
ज़िन्दगी से निभती नहीं निभाना पड़ता है,
खैरियत भली हो नहीं बताना पड़ता है,
उम्मीद भले टूट चुकीं पर जताना पड़ता है,
अरमान जो खो गए भुलाना पड़ता है,
नालायकों के आगे भी सर झुकाना पड़ता है,
ज़िन्दगी इसी का नाम है खुदको मनाना पड़ता है,
और इस तरह एक काबिल आम इंसान को खुदको मिटाना पड़ता है......
- cursedboon (ankit bhardwaj)
@cursedboon
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