यादें और तुम
वक्त-बेवक्त आ-आकर रूला जाती है याद तुम्हारी,
तुम तो नहीं हो पर दीवारों से होती है बात तुम्हारी।
तू शामिल है मेरी रूह के ज़र्रे ज़र्रे में कुछ इस तरहाँ,
रोते हुए को हँसा जाती है याद आकर बात...
तुम तो नहीं हो पर दीवारों से होती है बात तुम्हारी।
तू शामिल है मेरी रूह के ज़र्रे ज़र्रे में कुछ इस तरहाँ,
रोते हुए को हँसा जाती है याद आकर बात...