मंज़िल का ज्ञान...
क्यूं कहूं सबको की,
रोया मै भी था उस रात।
सब के रास्तों में,
मे बिछड़ा सा एक साज।
ना उन की तरह मंज़िल का पता,
ना रास्तों से अंजान।...
रोया मै भी था उस रात।
सब के रास्तों में,
मे बिछड़ा सा एक साज।
ना उन की तरह मंज़िल का पता,
ना रास्तों से अंजान।...