...

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मंज़िल का ज्ञान...
क्यूं कहूं सबको की,
रोया मै भी था उस रात।
सब के रास्तों में,
मे बिछड़ा सा एक साज।
ना उन की तरह मंज़िल का पता,
ना रास्तों से अंजान।
चलता रहा फिर भी,
अंजना, अंजान।
राहें मिली, मीले कुछ दिलदार,
बस कुछ ऐसे ही मिली मेरी मंज़िल मेरे यार।
ना पता थी राह, न चाह,
फ़िर भी दुआओ में मिला मुझे मेरी मंज़िल का ज्ञान।
© quotes_lover1023
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