मज़ाक बन गया हूं।
मज़ाक बन गया हूं
समझना कोई चाहता नही
सभी की बेतुकी अटकलों में
सिर्फ़ एक रिवाज़ बन गया हूं
फलक पे बिठा कर दूर कर दिया है
पूजते हैं हर रोज़ सुबह शाम
ख़ामोशी मेरी नजरंदाज करे सब
प्रथाओं की गुठबंधी ने मजबूर कर दिया है
रीति रिवाज़, पूजा पाठ, व्रत कीर्तन बनाए मैने
इंसान की प्रगति और समापन के ख़्वाब सजाए मैने
प्रेम की निष्ठा से ध्यान लगाएंगे ये सोचा मैंने
डर की बुनियाद की तपस्या देख ये उम्मीद गवाई मैंने
खुद को तकलीफ दे सोचते हैं मैं खुश रहूंगा
इन्हे लगता है इनकी तकलीफ़ देख इनका भला करूंगा
क्या ही समझ रखा हैं मुझे “जल्लाद हूं क्या? जो बली से खुश होऊंगा?”
ये मेरे बच्चे हैं, क्यों नही सोचते, इनकी तकलीफ मैं कैसे सहूंगा?
मज़ाक बन गया हूं
तकलीफ़ से जोड़ते है सब मुझे
खुशी की आशाएं इनमे ढूंढता
अपनी भटकन से जूझ रहा हूं।
© Literaria
समझना कोई चाहता नही
सभी की बेतुकी अटकलों में
सिर्फ़ एक रिवाज़ बन गया हूं
फलक पे बिठा कर दूर कर दिया है
पूजते हैं हर रोज़ सुबह शाम
ख़ामोशी मेरी नजरंदाज करे सब
प्रथाओं की गुठबंधी ने मजबूर कर दिया है
रीति रिवाज़, पूजा पाठ, व्रत कीर्तन बनाए मैने
इंसान की प्रगति और समापन के ख़्वाब सजाए मैने
प्रेम की निष्ठा से ध्यान लगाएंगे ये सोचा मैंने
डर की बुनियाद की तपस्या देख ये उम्मीद गवाई मैंने
खुद को तकलीफ दे सोचते हैं मैं खुश रहूंगा
इन्हे लगता है इनकी तकलीफ़ देख इनका भला करूंगा
क्या ही समझ रखा हैं मुझे “जल्लाद हूं क्या? जो बली से खुश होऊंगा?”
ये मेरे बच्चे हैं, क्यों नही सोचते, इनकी तकलीफ मैं कैसे सहूंगा?
मज़ाक बन गया हूं
तकलीफ़ से जोड़ते है सब मुझे
खुशी की आशाएं इनमे ढूंढता
अपनी भटकन से जूझ रहा हूं।
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