शीर्षक - स्वीकार।
शीर्षक - स्वीकार।
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा।
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा।
ऐसे ही नहीं जाता कोई छोड़के,
ज़रूर कुछ ना कुछ तो हुआ होगा।
दिखाए नहीं होंगे आँसू दशकों से,
पर आँसुओं का समंदर तो जमा होगा।
किया होगा शायद क़ैद में महसूस,
या फ़िर वो आसमाँ का परिंदा होगा।
...
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा।
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा।
ऐसे ही नहीं जाता कोई छोड़के,
ज़रूर कुछ ना कुछ तो हुआ होगा।
दिखाए नहीं होंगे आँसू दशकों से,
पर आँसुओं का समंदर तो जमा होगा।
किया होगा शायद क़ैद में महसूस,
या फ़िर वो आसमाँ का परिंदा होगा।
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