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स्वातंत्र्यवीर सावरकर
ये गाथा है तितीक्षा के महासागर की
महानायक स्वातंत्र्यवीर सावरकर की
पतीत पावन मंदीर जो सबके लिए खुल गया...
ये छुवाछुत का समाज क्रांतियज्ञ से धूल गया...
काला पानी पर जिनके तेज ने जो लकिरे खिंची थी...
लकिरो को लहर बनाकर समंदर ने भारत भेजी थी...
देशभक्ती की वही लहर माता के चरण धोने आयी...
जन गण के कण कण में प्रखर राष्ट्रवाद बोने आयी...
© Ashish Deshmukh
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