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केकैयी के प्यारे राम...
वो दशरथ नंदन बडे कुंवर
केकैयी को बडे ही प्यारे थे
पर विधि ने क्या कुचक्र रचे
वन जाएगे श्री रामचंद्र
कारण उनको ही बनाए थे
कुछ क्षण को मति मारी गयी
जो मंथरा उनकी सगी हुई
जिन्हे दूध पीलाया छाती का
उनसे ही दुश्मनी ठानी गयी
है विचित्र चरीत्र नारी का भी
जिसे कोई नही समझ पाया
कभी रौशन लगे चंद्रमा जैसी
कभी काली अंधेरी सी छाया।।
जो लिखा था आखिर वही हुआ
पर कर्ता कोई और होता है
कैकेयी ने कुछ किया नही
पर जगत तो दोष लगाता है
रामराज्य की स्थापना को
पुरषोत्तम होना जरूरी था
राजा के राजकुंवर होके
मिठे पकवान ही खाए थे
दिन कभी दुखो का न देखा था
हर दिन वो हरसाए थे
रणभूमि का था न ज्ञान अभी
न राजनीति ही सीखी थी
ऋषियों मुनियों से योग न था
समय माँ की ममता संग बीति थी
राजा राजेश्वर बनने मे
अपूर्ण अभी कुछ शिक्षा थी
इसलिए केकैयी माता ने
वनगमन के वर मांगे थे
राजेश्वर बने मेरा प्यारा , इसलिए
दशरथ से रार ये ठाने थे ।।
राजा भरत बने या राम बने
उनको रानी ही रहना था
उनका जाया ही राज करे
केकैयी ने कभी न चाहा था।।