ग़ज़ल
मुझे दुःख इतना फक़त इक बात का है,
ये मुद्दा शायरी का नहीं, मेरे जज़्बात का है।
जो हाल-ए-दिल को लफ्ज़ो में, उसको मैं बयाँ कर दूँ,
समझ के शेर, देते दाद, दर्द मुझे इस बात का है।
जिसे सुर्ख़ी हया की मान के खुश हो बैठे थे,
वो लाली रुख़ पे मेरे, सोज़-ए- इंताब का है।
मैं हारी थी दिल अपना, फक़त प्यार में उनके,
ये मुद्दा उल्फ़त-ए-यार का है, न कि मेरी मात का है।
@Pankaj_bist_ruhi
© Pankaj Bist 'Ruhi'
ये मुद्दा शायरी का नहीं, मेरे जज़्बात का है।
जो हाल-ए-दिल को लफ्ज़ो में, उसको मैं बयाँ कर दूँ,
समझ के शेर, देते दाद, दर्द मुझे इस बात का है।
जिसे सुर्ख़ी हया की मान के खुश हो बैठे थे,
वो लाली रुख़ पे मेरे, सोज़-ए- इंताब का है।
मैं हारी थी दिल अपना, फक़त प्यार में उनके,
ये मुद्दा उल्फ़त-ए-यार का है, न कि मेरी मात का है।
@Pankaj_bist_ruhi
© Pankaj Bist 'Ruhi'