...

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गर मै कहती हूं...!!
ग़र मैं कहती हूँ
कि तारे मुझे बेहद अज़ीज़ हैं ,
वो कहता है कि आप तो क़ायनात हो सनम
आपके सामने ये तारे क्या चीज़ हैं ,
मुस्कुरा के आँखें मेरी उसको चूम लेती हैं ,
बिन जताये मन ही मन ख़ुशी झूम लेती है ,
मैं झूठ कहके उसकी सारी बातें टाल देती हूँ ,
कुछ पुराने झगड़े उसके सर पे डाल देती हूँ ,

ग़र मैं कहती हूँ
कि बातों में ना तुमसे जीत पायेंगे ,
वो कहता है कि छोड़ो जां शिक़ायतों को
बस यहीं नोंक - झोंक में हसीं ये लम्हें बीत जायेंगे ,
झुक जाती हैं निगाहें उसकी बात मान लेती हैं ,
उसकी ये अदायें हाय मेरी जान लेती हैं ,
दो कदम का फ़ासला मैं उससे बना लेती हूँ ,
बढ़ती इन धड़कनों को फिर से मना लेती हूँ ,

ग़र मैं कहती हूँ
कि ये हवाएँ मुझसे बात करती हैं ,
वो कहता है कि मुश्किलों से थामते हैं दिल सनम
जब हवा ये आपको छू कर गुज़रती है ,
चेहरे पे मेरे बस हया का रंग चढ़ जाता है ,
मुस्कुरा के दो कदम वो भी बढ़ जाता है ,
फिर बाँहों में लेके बाँहें आसमां को ताकते हैं हम ,
टूटते तारों से इक दूजे को माँगते हैं हम ।

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© Saloni saradhana 😎