...

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इश्क़
बेचैन सा उसका दिल
अपने भीतर कई ज़ख्म छुपाये हुए है
और उसकी घुटन
उसे तिल-तिल कर जलाए जा रही है
ये 'इश्क' क्या बस उसे ही था
या उसको भी था
जो बेवफ़ाई की धूंध में छुप गया है
एक गहरी सांस लेकर वह
अपने सारी अरमानों पर परदा डालती है
और बाँध लेती है
एक गाँठ अपने दुपट्टे के कोने में
शायद अब फिर कभी
वो 'इश्क' की दहलीज़ तक नही जायेगी
वह अपनी मुट्ठी को भींचकर
एक मर्यादा की रेखा खिंच लेती है
और पोछ लेती है अपने अस्क
क्युंकि अब उसे 'इश्क' की पहचान हो गई है ।