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हमहू लड़ब परधानी…
हमहू लड़ब परधानी, गांव मा रूतबा बनाइबे।
चाहें बिके छप्पर छानी, गांव मा रूतबा कमइबे।।

नाली नरेगा का पैसा बचाइबे।
गांव वालेन का अंगूठा दिखइबे।।
घर मा भरइबे अपन पानी, गांव मा रूतबा दिखइबे।।

पांच साल गांव भर का घुमइबे।
मंत्रिन से आपन पैठ बनाइबे।।
संसद बनईबे रजधानी। गांव मा रूतबा कमइबे।।

अंग्रेजी मिडियम सकूल खुलइबे।
महंगी से महंगी फीस कमइबे।।
ठाट हुइहइं खानदानी। गांव मा रूतबा जमइबे।।

लेट्रिन के पइसन से बिल्डिंग बनाइबे।
महलन साही हम वहि का सजइबे।
रहिबे जइस राजा रानी। गांव मा रूतबा कमइबे।।

दस - बीस गाड़ी मोहरे पे हुइहैं।
नेता दरबारी मोहरे पे रहिहैं।
करिहैं सब अगवानी। गांव मा रूतबा कमइबे।।

मन से न मिलिहैं तऊ धन से खरिदिबे।।
मतदातन अऊ व्वाटन का ठगिबे।
दई दीब उनई राशन पानी। गांव मा रूतबा कमइबे।।

हमहूं लड़ब परधानी गांव मा रूतबा कमइबे।
झपटि लीब परधानी। गांव मा रूतबा कमइबे।।

शारद पंडित प्रशांत कुमार
पाली, हरदोई (उप्र)

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