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Journey of two Divine love in one Supreme Love.
दो व्यक्ती में यदि प्रेम हो,,
तो विवाह से सुंदर जगत नहीं.
किंतु यदि एक में भी प्रेम नही तो
विवाह से भयानक नर्क भी नही.
विवाह में तभी उतरो जब आप देना चाहते हो,
एक देने वाला भी पूरा पुरा और एक लेने वाला पुरा पूरा हो, भरा सागर खाली गागर..
तब भी फिर भी ठीक ठीक विवाह चल जाए.
किन्तु दोनो ही यदि ठन ठन गोपाल हो.
विवाह से बड़ा क्लेश नहीं जीवन का
वही स्वर्ग की अपसरा दानव कुल की राक्षसी मालुम होने लगती है.
और वही handsome dude दानव कुल का अधिपति।
विवाह पथ है, परमात्मा का!
यदि दो में प्रेम हो तो,
यह त्याग है, तप है....सेवा है...
महज़ पाने की आकांक्षा से व्यक्ति इसमें उतरता है ...
तो व्यक्ती विवाह के सुख को उपलब्ध नहीं हो सकता.
और प्रेम सहित परम सुख परमानंद को भी उपलब्ध हो जाता है व्यक्ती..
फिर उसमे खुदके लिए कुछ पाने की तमन्ना नही रह जाती ...
वह देने के सुख को जान जाता है
वह संसार को अब बस देना और देना ही चाहता है
किंतु पहले दो का प्रेम दो में तो पूरा पुरा हो..
यू विवाह आपको मुक्त कर देता है!
यह एक बंधन आपको समस्त बंधन से मुक्त कर देता है!
दो व्यक्ती साथ में जब स्वयं में तृप्त होते है
तो उनका होना जगत के लिए अमृत हो जाता है....

किन्तु यही विवाह जब
नफरत और घृणा से भरा होता है
तो यह स्वयं के लिए और जगत
के लिए भी विषाक्त हो जाता है
यही कारण है मैं विवाह को पाप कहती हु,
यदि इसमे प्रेम नहीं है
और बच्चे पैदा करना तो क्राइम
यदि विवाह में प्रेम नहीं है...
क्योंकि बच्चे के बाद,
दो नफ़रत भरे माता पिता साथ रहे या जुदा हो जाए ...
Suffer तो बच्चे को ही करना है
और एक जीवन जो जग की ज्योति बन सकता था!
जग के प्रकाश का स्त्रोत बन सकता था!
उसी के ही जीवन को आप अंधकार से भर देते है...
इससे बड़ा पाप भला क्या होगा ...!
इसीलिए विवाह से पूर्व प्रेम में प्रवेश कीजिए...!!
जानिए ...क्या आप स्वयं को उसे पूरा पूरा सौप सकेंगे क्या ...!
मैं को बचा के प्रेम नही होता ...
विवाह पूजा हो जाती है यदि इसमें प्रेम है तो,
और वह दूजा परमात्मा ...
यदि आप में एक दूसरे के लिए सम्मान है तो,
... समर्पण है तो.
लोग निर्जीव मूर्ति व पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा कर,
उसे भगवान बना देते है...
और यहां आपका प्रेम ही परमात्मा को
स्वयंम प्रतिष्ठित कर देता है उस दूजे में।
प्रेम हर पूजा से उपर है...
और हर वह पुजा विफल है जिसमे प्रेम नही है।
इसीलिए प्रेम प्राथमिक है
संबंध द्वितीय...
प्रेम है तो संबंध संभल ही जाएगा ...
किंतु यदी प्रेम नही तो,
उस संबंध को संभाल के भी
तुम क्या ही कर लोगे...!
इसीलिए यदि विवाह में प्रवेश करे
तो होश में प्रवेश करे..
यह कोई सामान्य घटना नही ..
इसीलिए जगत के सारे फसाद की जड़
मैं विवाह को मानती हु।
और मानव जगत में जो कुछ अच्छा है
उसके पीछे भी मैं विवाह को ही मानती हु ...
क्योंकि जगत में बुरा करने वाले की उत्पत्ति भी विवाह से हुई है
और अच्छा करने वाले की भी।
किंतु जगत में बुरा करने वालो को तादाद ज्यादा है ...
तो समझ ही जाइए
हमारे जगत विवाह की क्या दशा है।
मैं विवाह के खिलाफ नही हू,
बलकि मैं विवाह को इतना पवित्र मानती हु
के यू ही इसे हाथ नही लगाया जा सकता।
यह अशुभ, अशुद्ध हो जाएगा ...
महज़ प्रेम के गंगाजल में नहाकर
विशुद्ध होकर ही,
इसमें प्रवेश किया जा सकता है...
तब जीवन में शिवशक्ति का वास हो सकता है।
लक्ष्मी नारायण का सही सही निवास हो सकता है।
आप उनकी पूजा करे न करे ...
जिस घर में प्रेम है,
वो यूंही मंदिर हो जाता है ..
युही वहा देवी देवताओं का वास हो जाता है।
वरना आप कितना ही पूजा पाठ करलो
राक्षसी शक्तियां आके आपके घर में,
मन में अपना बसेरा बसा लेती है।
और वहीं नर्क निर्मित होता है।
इसीलिए जब भी विवाह में प्रवेश करे
होश में प्रवेश करे, प्रेम के द्वार से प्रवेश करे।
जागरूक रहें!
business डील करेगें ..
तो हो सकता है मुनाफे का सौदा हो ...
मगर business तो business है,
कब घाटे में चला जाए किसे खबर
और फिर सौदा तो सौदा ही है
किंतु प्रेम सौदा नहीं,
समर्पण, स्वीकार है
प्रेम से बड़ी कोई पूजा नही।
business जितनी कमाई देगा उससे अधिक stress भी देगा।
इसीलिए होश में रहिए!
आपकी आत्मा सदेव आपको सच दिखाती है।



प्रेम जगत का सार!!!😊

...journey of two #divinelove can lead you to the one #supremelove. your #supremeself... in that way I call #love and #marriage a very spiritual thing.🙂
© D💚L