...

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चिट्ठियाँ
खो गयी ना जाने कहाँ आजकल,
कभी ख़बरों की मिलती थी हलचल,
ये चिट्ठियाँ हो गयी है कहीं गुम...!

शुरू होती थी बड़ो के आदर संग,
और अंत मे लिखते थे छोटो को प्रेम,
मध्य में होता था लेखन,
कभी खुशियों का कभी गमों का,
खुश हो लेते थे पहले पढ़कर अपनो की खुशियां,
और छलक आती थी कभी आँखें गमों को पढ़कर,
पर अब बदल गया है ज़माना,
बदल गया इंसान,
ना रहा वो दौर अब लिखना चिट्ठी का...!

पहले आता था डाकिया,
लेकर उन चिट्ठियों को,
तो हम भी रहते थे बड़े बेताब,
पढ़ने को उन चिट्ठियों को,
जो सुनाती थी दास्तान शब्दों में,
कह देती थी हर किसी का अफसाना,
लगता था चिट्ठी में लिखा हो,
जैसे कोई मिला हो खज़ाना...!

पर आजकल mobile, email, internet ने,
कर दिया है खत्म उस एक छोटे से कागज़ में,
लिखी चंद स्याही की बूंदों की एक दास्तान प्रेम की...!

© Rohit Sharma "उन्मुक्त सार"