...

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मुश्किले
दर्द ही दर्द हैं किसी से यूँ ही कैसे बया करें?
महफ़िल ही महफ़िल हैं किसी पे यूँ ही कैसे ऐतबार करें?
बहलाके अपने दिल को जख्मों पे मरहम मलते हैं।
बिखरी हुई सी जिन्दगी किस्मत मे ख़ुद के मिलती है।
© अमित कुशवाहा "कुश"