कृष्ण और महाभारत
जो गाल में समा रखा है अपने पूरी सृष्टि को,
जो भाप जाते है हर नजर, हर बुरी दृष्टि को,
हो कंश, या रावण, जो दुर्योधन का भी काल बना,
नारायण से जो टकराया, वो भस्म हुआ कंकाल बना,
पहुंचे थे हस्तिनापुर वो, बनकर पांडवो के शांतिदूत,
दे दो बस पाँच ग्राम पांडवो को, हे कुरुवंश के सूत,
मगर कौरवों ने ना मानी, ठुकराया शांति प्रस्ताव,
उन पांडवो को तो भीख न दु, ना दुंगा एक भी गाँव,
दे दी चुनौती मूर्ख कौरव ने, हरि को बांधने वो आए,
देख सभा में सब दंग हुए, धरा लगी कांपने थर्राए,
हे मूर्ख दुर्योधन तुम्हें है नहीं, अभी ज्ञान ये,
बंदी बना रहे हो उन्हें, जो कड़-कड़ में विद्यमान है,
तुमनें निमंत्रण दे दिया है अब अपने ही काल को,
हे मूर्ख अब देखोगे तुम अपनी ही मृत्यु अकाल को।
© Vishakha Tripathi
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