...

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तमाशे के लिए नाम
वो गुनहगार ढूंढते है
निशाने के लिए एक नाम ढूंढते है
उसकी पहचान पर हजारों सवाल खींचते है
उसके गुनाह में
धर्म जाति लिंग की लकीर खींचते है
इस सारे तमाशे में
गुनाह की ओर के दरवाजे नही दिखते
उस तक ले जाने वाले हाथ नही दिखते
दूर कही नजरे गडाए रखते है
वो नए नाम की तलाश में दिखते है

वो दरवाजा गर्त का आज भी खुला है
उस तक ले जाने वाले हाथ भी व्यस्त है

पर उस हाथ पर एक नाम नही है न
बिना नाम के वो निशाने पर नही है न
उसकी पहचान में तो लाखो नाम लिखे है
कई बरसों की बनी घटनाएं छिपी है
उसके गुनाह में
धर्म जाति लिंग की लकीर संभव नही है न
वो तो गुनहगार ढूंढते है
निशाने के लिए एक नाम ढूंढते है
तमाशे के लिए एक पहचान ढूंढते है

© @nn