सुकून
महकते हो हर रोज फुलवारी में
न जाने क्यों तुम,
चुभते हो हर रोज, मगर अब ख्वाब हो तुम,
मेरी मर्जी से यहां न हो तुम,
मगर अब भी मेरा मन हो तुम,
एक टूटी, अधूरी_ सी आस हो तुम
भीड़ में एक तलाश हो तुम,
न जाने खोए हो, अब कहां तुम,
जेठ की दुपहरी में प्यास हो तुम,
आषाढ़ के मौसम में...
न जाने क्यों तुम,
चुभते हो हर रोज, मगर अब ख्वाब हो तुम,
मेरी मर्जी से यहां न हो तुम,
मगर अब भी मेरा मन हो तुम,
एक टूटी, अधूरी_ सी आस हो तुम
भीड़ में एक तलाश हो तुम,
न जाने खोए हो, अब कहां तुम,
जेठ की दुपहरी में प्यास हो तुम,
आषाढ़ के मौसम में...