आखिरी ख्वाहिश
अखबारों में ये दरख्वास्त छपाई जाए।
अब ज़माने में मुहब्बत न लुटाई जाए।।
हमें गुज़रे है इंसानियत के पुतलों से।
मातम-ए-मौत को न भीड़ जुटाई जाए।।
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अब ज़माने में मुहब्बत न लुटाई जाए।।
हमें गुज़रे है इंसानियत के पुतलों से।
मातम-ए-मौत को न भीड़ जुटाई जाए।।
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