...

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याद
आज फिर दिल मुझे जलाना है,
ता-सहर साक़िया पिलाना है।

क्या बताएँ कि पीते क्यों हैं हम,
ये फ़क़त मरने का बहाना है।

जाम-ब-जाम तू पिला साक़ी,
ज़िन्दगी का कहाँ ठिकाना है।

आज कुछ तो अलग पिला साक़ी,
आतिश-ए-दिल ज़रा बुझाना है।

होश बाक़ी रहे न अब मेरा,
उसकी हर याद को भुलाना है।

तल्ख़ हैं उसकी यादें मय जैसी,
यादों को मय में ही मिलाना है।

जब तलक ज़िन्दा हैं, पिएँगे हम,
अपना तो बस यही फ़साना है।
© Azaad khayaal

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