...

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तिरंगे में लिपटा आया है वो
तिरंगे में लिपटा आया है वो,
अपने घर की दहलीज पर।
माँ को दिए, वापस आने के वादे
सात फेरों संग पत्नी को दी कसमें।
उन सबको निभाता,
आज वो लौट आया है।

चुका आया है वो सारे कर्ज़,
उस वर्दी का,उस माटी का।
जो अब भी,आँखें बिछाए खड़ी है,
सुलाने को उसे,ममता की गोद में।
अब भी इंतेजार में है,बाँहें फैलाये
अपने आगोश में समेटने को।

अभी तो कदम ही रखा था,उसने
जवानी की ड्यौढ़ी पर।
छोटी सी उम्र और,
देशभक्ति का ऐसा जूनून।
कदाचित विरलों में मिले कहीं।

गोलियों ने भेदा था,छलनी किया था,
सिर्फ उसके सीने को।
हौसले तो अब भी बुलंद थे।
चेहरे पर सुकून का वो तेज़
होठों पर हलकी सी मुस्कान,
हाथों में सजा असला।
अब भी तत्पर था वो,फिर उठने को
लड़ने को,
फिर से शत्रु के दाँत खट्टे करने को।