ख़त
सब लिखे हुए
मिटा दिए हमने
ख़त तिरे गंगा में
बहा दिए हमने
और उस पे ये
इल्ज़ाम अपने सर रखा
जितने भी लोग थे
सब भुला दिए हमने
एक हमारी ही रज़ा है
जो वो देखता है
वर्ना कब के आंखों के
ख़्वाब जला दिए हमने
और लफ्जों को
शिकायत रही होंठो से
जितने भी गुनाह थे
सब गवां दिए हमने
© Narender Kumar Arya
मिटा दिए हमने
ख़त तिरे गंगा में
बहा दिए हमने
और उस पे ये
इल्ज़ाम अपने सर रखा
जितने भी लोग थे
सब भुला दिए हमने
एक हमारी ही रज़ा है
जो वो देखता है
वर्ना कब के आंखों के
ख़्वाब जला दिए हमने
और लफ्जों को
शिकायत रही होंठो से
जितने भी गुनाह थे
सब गवां दिए हमने
© Narender Kumar Arya