रातों का कामगार
वो मिल न पाए
उस दुनियां से,
जो रात में सोते हैं
और दिन में जगते हैं
वो उस दुनियां से हैं
जो दिन में सोते हैं
और रात को जगते है
हो धुप्प अंधेरा जब
तब काम पे चलतें हैं
बादल हो बारिश हो
या ठंड या कोहरा ही
शोलों सी गर्मी भी,
ये वो अंगारे हैं
भट्ठी में जलतें हैं;
रातों को राहों में
चाहे घोर अंधेरा हो
चाहे हो सूनी गलियां
तारों को देखते हैं
कभी चांद को तकते हैं;
जब रात अंधेरी हो
गलियों के कुत्ते हो
कभी पत्थर चलते हैं
कभी राम को भजतें हैं
इन कामगारों की
ऐसी दिनचर्या है
पंछी का कलरव...
उस दुनियां से,
जो रात में सोते हैं
और दिन में जगते हैं
वो उस दुनियां से हैं
जो दिन में सोते हैं
और रात को जगते है
हो धुप्प अंधेरा जब
तब काम पे चलतें हैं
बादल हो बारिश हो
या ठंड या कोहरा ही
शोलों सी गर्मी भी,
ये वो अंगारे हैं
भट्ठी में जलतें हैं;
रातों को राहों में
चाहे घोर अंधेरा हो
चाहे हो सूनी गलियां
तारों को देखते हैं
कभी चांद को तकते हैं;
जब रात अंधेरी हो
गलियों के कुत्ते हो
कभी पत्थर चलते हैं
कभी राम को भजतें हैं
इन कामगारों की
ऐसी दिनचर्या है
पंछी का कलरव...