...

13 views

गुनाहगार
चंद जिम्मेदारी से जब जुड़े जिंदगी
प्रश्न था कुछ मासुमो के जीवन संवारने का,
बहुत ही गंभीर विषय था
समझे ही नहीं गवां दिया।
बहुत शौक से चुने थे इस पद को
सोचे थे राष्ट्र निर्माण का भागेदारी बनूं,
पर न दृष्टिगत हुए वे अपने
बस समय का दुरुपयोग करते गया।
न मुझे चिंता थी मेरे कृत्य का
बस रोजी- रोटी पर ही ध्यान था,
पीढ़ी दर पीढ़ी का विनाश हुआ
पर मैं न कभी शर्मिंदा था।
बस चिंता थी तो एक बात की
मेरे अपनों की न क्षति हो,
वे जहां शिक्षा प्राप्त करें
विद्या की ही बरसात हो।
आज सोचता हूं कितने ही भविष्य
बिगड़ गए मेरे कारण,
किसी माफी के मैं काबिल नहीं
हां मैं हूं गुनाहगार।