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पागल मनवा
मुझे आज तक मेरी जिंदगी ने सबक ही सिखाया है,
पर यह सबक मेरे आज तक क्यों समझ नहीं आया है,
नासमझी लालच में मैंने अपना बहुत कुछ गंवाया है,
बेवजह के कर्म करके अब तक कुछ भी तो नहीं पाया है,
धर्म अधर्म का मतलब समझने में उलझा हुआ मेरा साया है,
क्यों दिल गवाही नहीं देता कि यहां जो कुछ भी दिखे सब ही तो माया है,
कोई पास है कोई जुदा हो गया यह खेल किसने रचाया है,
बस इस जन्म तक का ही नाता है इस दुनियां से जो रिश्ता तुमने सबसे बनाया है,
हे बावरे मन क्यों इस फेर में पड़े आज क्या खो दिया क्या तुमने कमाया है,
यहां सब मतलब के साथी मतलब निकलते ही हर कोई पराया है,
एक बात सुन हमसे भी बहुत आएं और चले गए बस कुछ विरले ही थे जिन्होंने इतिहास में नाम दर्ज कराया है,
जीवन से इतना मोह ठीक नहीं क्योंकी पैदा होते पीछे पड़ जाता मौत का साया है।
© DEV-HINDUSTANI