ख़्याल उसका दिली तमन्ना मेरी
यूं ही टकरा गए थें उससे
किसी महफ़िल में
उसका आना -जाना था उस महफ़िल में
मानों जैसे वो उसका घर हों
शामिल किया उसने मुझे अपनी महफ़िल में
और खुद लौट गया
नजरें उसने कुछ इस क़दर फेरी
मानों जैसे कभी देखा ही नहीं
और मेरी नज़र उससे हटीं हीं नहीं
सबकी नज़र अटकीं थी मुझ पर
और वो मेरी नज़रों बस चुका था
इंतज़ार हुआ करता था उसका उसी महफ़िल में...
किसी महफ़िल में
उसका आना -जाना था उस महफ़िल में
मानों जैसे वो उसका घर हों
शामिल किया उसने मुझे अपनी महफ़िल में
और खुद लौट गया
नजरें उसने कुछ इस क़दर फेरी
मानों जैसे कभी देखा ही नहीं
और मेरी नज़र उससे हटीं हीं नहीं
सबकी नज़र अटकीं थी मुझ पर
और वो मेरी नज़रों बस चुका था
इंतज़ार हुआ करता था उसका उसी महफ़िल में...