...

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इस शहर का उज्जाला
आवादी इतनी है के कोई केसे खो जाए
ये शहर में कुछ एसा भी सहर हो जाए

हज़ार है चेहरे, हर चेहरों में एक अलग नज़ारा
ये शहर में क्या पता किसे,
जो आज अपना, वो कल कीसी और का यारा

बड़े-बड़े इमारतों में कुछ दिल् भी बे-सहारा
कम्बखत इश्क़-अयासी-दीवानगी में डुबे बसर बिचारा

मेरे लफ्जों में, किताबों में कहीँ ना कहीँ तो
आज भी मेरा गाओं बसती है, साहाब
में नहीं इस शहर का, ये बात
मेरे अँधेरा को, यहां की उजालें बताती है
© wingedwriter