...

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त्याग का उदाहरण


ए वृक्ष जब से देखा है तुझे,
यह विचार आता बार बार मुझे।

क्यों नहीं रहता तू पूरा वर्ष हरा,
क्या रुषट हो गई है तुझसे यह विशाल धरा।

क्यों त्याग दिये तूने अपने
वह हरे छोटे अंग(पत्ते)
तुझे बिन बालों का देख के
आज रह गया मैं दंग।

अरे मेरे मित्र मेरे बंधु
मुझसे बात तो करले यार
त्यागने से और मिलता है यह जाने
तू कितना है समझदार।

ओ वृक्ष सुन मेरी बात
चल करले थोड़ा अभिमान
सब प्राणियों में नहीं परंतु
मनुष्य से तो है तुझे महान।

त्याग देता है तु अपनी खुशी
करके भाग्य पे विश्वास
पर मनुष्य नहीं कर सकता ऐसा
कयोंकि उसे खुद पे ही नहीं विश्वास।

क्या असीम धैर्य है तेरा
मान या मैं तुझे
क्या अनोखा ज्ञान दिया है
आज तुने मुझे।

ए वृक्ष जब से देखा है तुझे,
यह विचार आता बार बार मुझे।

सरलार्थ-कविता का अर्थ यह है कि जिस प्रकार एक वृक्ष पतझड़ में अपने पत्ते खो के शोक नहीं करता वह विश्वास रखता है कि अगले ऋतु में नए पत्ते आएँगे,उसी प्रकार मनुष्य को अपने जीवन में कुछ खो देने का शोक करने की बजाय भविष्य में जो प्राप्त किया जा सकता है और वर्तमान में जो है वह विचार के आनंदित होना चाहिए।
© Harshit Kumar