...

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तुम्हारे ख़ैर खां मुझे दुश्मन समझते हैं,
बात ही क्यों की जाए,
रब्त बढ़ाने के लिये,,

यूँ रोज ना मिला जाए,यार
कोई वज़ह तो हो बुलाने के लिये,,

तुम्हारे ख़ैर खां...