"माँ"
"माँ" तुम्हें सब दिखता है
के कहाँ पे उठता है
...कहाँ दुखता है,
तुम जानों सब मर्म यह जीवन के
तुम से कहाँ "माँ" कुछ.. छिपता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
तुम पवित्र सा कोई धाम हो...
के कहाँ पे उठता है
...कहाँ दुखता है,
तुम जानों सब मर्म यह जीवन के
तुम से कहाँ "माँ" कुछ.. छिपता है,
"माँ" तुम्हें सब दिखता है,
तुम पवित्र सा कोई धाम हो...