...

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मेरा प्रिय हनुमान
समझ नहीं आता तुझ पे गजल लिखूं या सायरी
कविता लिखूं या गीत
ऐसा क्या लिखूं की तेरा पूरा वर्णन कर सकू
कहानी लिखूं या पूरी एक किताब
समझ नही आता तेरी मेरी कहानी कैसे लिखूं
जब कभी भी में लिखने बैठू,
लगता है की कहा से शुरू करू
तेरे रूप का वर्णन करू
या तुम्हारे साफ चरित्र का?

तू मुझ में कुछ इस तरह बसा है की में चाह कर भी तुझे अपने आप से दूर न कर पाई
मेरी कविता का बोल है तू
अगर तुझ से दूर गई तो सायद अपनी लिखावट से भी दूर चली जाऊंगी
मेरी कल्पना
मेरी कविता
मेरे मन को सुकून पहुंचने का एक मात्र जरिया है तू
मेरा दिलरूबा, मेहबूब ये सब तो नही  है तू,
पर मेरे जीवन का एक मात्र सहारा है तू।

मेरे दोस्त हो तुम
मेरे प्रेमी हो तुम
मेरे विचलित मन को शांत करने का जरिया हो तुम
अगर सच बताऊं तो मेरे  सर्वस्य हो तुम
हे हनुमान तुम मेरे जीने का एक मात्र कारण और सहारा हो
और जैसे में तुझ में रमी रहती हूं वैसे ही तुम्हे भी हर पल मेरे साथ मेरे पास रहना होगा
तुम मेरे हो और मेरी आत्मा तुम्हारी है।
जय श्री राम।।
                        

© नैनिका