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गुरू ग्रंथ साहेब जी(११वें गुरू)
समय १७०८ का था तब,मुगलों‌ का था‌ शासन ,
सब कुछ वार राष्ट् पर, आनंदपुर से गये नांदेड़,
कर क्षमा मुगल शासक को,अपने में हो गये लीन,
तारते अपने शिष्यों को,करते धर्म का प्रचार
वे थे‌ अपने कर्म में तत्पर,दुष्टों को कहां था सहन,
जब वे थे सो रहे अपने कक्ष में,किया छुरी से उदर पर वार,
किया गया‌ जब शल्यचिकित्सा, कहा‌ गया तब लें आराम,
वे बोले अब नही‌करना आराम,कह ही चुके थे अपने शब्द में,
मन नहीं था मेरा आने का संसार में,
प्रभु ने आज्ञा दे कर भेजा मुझे संसार में,
कहा प्रभु ने "तुम्हें संसार में जाना होगा,
करना धर्म का प्रचार होगा,
मिसाल एक बनाकर फिर तुम्हें आना होगा"
आज्ञा पूरी करने प्रभु की आये वे संसार में,
बुलाया अपने शिष्यों को नगीना घाट पे,
आज्ञा दी अपने सिखों को जो थी ईश की,
"आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ
सब सिखन को हुकुम है गुरू मानियो ग्रंथ"
🙏🙏🙏🙏🙏
कहकर अपने सिखों रखें पांच पैसे और
नारियल ग्रंथ साहेब के आगे,
माथा टेक कर‌ किया प्रणाम,गुरू गद्दी दी
गुरू ग्रंथ साहिब को,
था‌ दिन वो कार्तिक मास की दूज,
जिस दिन मनाते सारे भारतवासी भाईदूज,
थे गुरू गोबिंद सिंह जी भविष्य के ज्ञाता,
दिया पाखंड और‌ झूठ से बचने का रास्ता।।