...

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मूक माता पिता....
अब रिश्तों मे कुछ भी भावनात्मक एहसास नही रहा, कारण ढुढने की कोशिश मे
जींदगी गुजर गयी ...
संतान को जन्म देते वक्त जो दर्द माँ को सहना पडता है वो यदि संतान थोडा सा भी अनुभव
कर ले तो शायद ये स्थिति न हो।
बच्चे माँ बाप को इतना बेबस कर देते है कि माँ बाप
मूक हो जाते है ऐसे जैसे बेजुबान पशू हलाल के समय रहता है, पर बच्चे समझते है मेरे डर से
कुछ नही बोल सकते मै कुछ भी करूँ कही भी जाउं , गलत करते देखकर माँ बाप बच्चे के मोह मे खून के आंसू बहाने पर मजबूर होते है, कभी हिम्मत करके कुछ मुह से निकाला नही कि बच्चे
ऐसे कटु वचन बोलकर चुप करा देते है, फिर माँ बाप अपनी जुबान पे ताला लगा लेते है, और बच्चे समझते है मै जीत गया , पर क्या ऐसे बच्चे जीवन मे सफल हो पाते है?? जिस उंगली को पकडके चलना सिखते है उसको ही तोड देते है। जो बोलना सिखाते है उन्हे बच्चे ऐसे डपट देते है जैसे बाप माँ न हुए सडक पडे कोई भिखारी हो ।
आप बताईये क्या सामाजिक स्थिति ऐसी हो रही है तो बच्चे को जन्म देना अपना बुढापा खराब करना होगा ?? या विवाह करना ही अपराध हो रहा है?? जब जीवन के अंतिम पडाव मे यही सब भोगना है तो क्यो बच्चे पैदा करे ?? तन्हाई का एहसास कम से कम इतना भयावह तो नही होगा ।
जो बच्चे अपने माता पिता के साथ ऐसे दुर्व्यवहार करते हो उनसे सेवा की उम्मीद करना तो ठंडी पडी राख मे चिंगारी ढुढने जैसा ही है। तो क्यूँ न कही एकांत मे जाकर ये मानकर की मेरा कोई नही है अपने अंतिम दिनों को गुजारे...?? कम से कम इस संताप से तो आहत नही होगा कि मेरे तो सब है पर कोई देखनेवाला नही है।
ये वही बच्चे करते है जिन्हें इतना भी ज्ञान नही होता कि ये उम्र उनपर भी गुजरनेवाली है,
जबतक समझे बहुत देर हो चुकी होती है मा बाप तस्वीरों मे रहते है, काश बच्चे समझ पाते
क्या ये कलियुग का प्रभाव है?? तभी तो ये चलन मे आ गया है हर घर की यही कहानी है।
सेल्टरहोम, पार्क मे समय काटनेवाले हर बुजुर्ग की
यही दशा है ।
क्या ये अग्रेजी शिक्षा प्रणाली की देन है??
चाहे कारण कोई हो पर हम सबके लिए अत्यंत गंभीर समस्या है ये और हमे ही इसका निदान ढुढने पडेगा ।।।।।