...

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Poem: मर जाऊँ मैं ...
तो क्या हो अगर मर जाऊँ मैं
न कुछ कहूँ सुनूँ किसी से
और पत्थर सी कठोर हो जाऊँ मैं

कौन आएगा कोई नहीं आएगा
दिल के टूटे टुकड़ों को उठाने
तो क्या हो अगर अपने इस दिल को
अपने ही पैरों तले कुचल जाऊँ
और मर जाऊँ मैं ...

किसको फर्क पड़ता है किसी से
इन आँसुओं का क्या है
ना कोई दीन धरम है इनका
ना कोई जाति पाती है इनकी
ये हर बात पर आँखों से
बरस जाएंगे और बरसते जाएंगे
तो क्या हो अगर इन आँखों को
आज अभी यहीं फोड़ दूँ मैं
न कुछ देखूँ न दिखाऊँ
और मर जाऊँ मैं ...

अपना कभी...