...

7 views

शिकायतें
शिकायतें बहुत होंगी हमसें
जितनी भी है लिख कर भिजवा दो।

बेचैन दिन और तन्हा रातें
मरहम से बंध कर भिजवा दो।

दर्द की हर एक आवाज़ें
शब्दों में हां तुम भीगा दो।

अश्क़ों की काली घटाएं
कोरे चिलमन पे बरसा दो।

के तरबतर होना है मुझको
ख़त पढ़ कर यूँ रोना है मुझको।

जैसे तुम रोया करते थे
हां वही पल भिजवा दो।

शिकायतें बहुत होंगी हमसें
जितनी भी है..लिख कर भिजवा दो।
© paras