...

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मै दूर जाना चाहती हूं
अपने दर्द की वजह
अपनो की दी दगा मै सब
भूल जाना चाहती हूं

मै सब से दूर जाना
चाहती .... इतनी दूर
की जब उदासी मेरे
चेहरे पर आए कोई
उसकी वजह ना पूछे

कोई मुझे रोता ना देखे
जब लड़खड़ाए मेरे क़दम
कोई हाथ थाम कर झूठी
उम्मीद मुझे ना बेचे .......

मै नुमाइश नही करना
चाहती अपने दर्द की ,

अब तलाश नही मुझे किसी
हमदर्द की ........

मै समेट लेना चाहती हूं
अपने जज़्बात , सुधारना
चाहती हू अपने हालात

लड़ना चाहती हूं खुद से
समझना चाहती हूं खुद को
वक्त निकाला है बहुत गैरो
के लिए ,
अब मिलना चाहती
हूं खुद से ..….......

खोना चाहती हूं खुद में
रोना चाहती हूं खुल के
बस इसलिए सबसे दूर
जाना चाहती हूं ........

जहां पर सिर्फ मेरी परछाई
हो साथ मेरे एक ऐसी जगह
जाना चाहती हूं ..........

पुरानी यादें , रिश्ते , नाते,
वो तीर सी चुभती बाते वो
अपनो के ताने सब भूल
जाना चाहती हूं .............

मै सब से दूर जाना
चाहती हूं .........

जैसे चिड़िया उड़ते
ही अपना घोंसला
त्याग देती है ..........

वैसे ही पंख लगाकर
मै भी उड़ना चाहती हूं
रोकते हैं जो मुझे मेरी
उड़ान से .... एक
नई पहचान से .…....

उन सब से दूर जाना
चाहती हूं ..... मै पुरानी
Ruhi को भूल जाना
चाहती हूं ........

मै सब से दूर जाना
चाहती हूं....!

✍️Ruhi


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