पड़ोसी दुनिया
पक्के मकानों की, इस गली को देखो
हम नए किरायेदार हैं, हम ही को देखो
सामान थोड़ा कम, और हसरतें ज़्यादा है
जुटा लेंगे ऐशो-आराम, तुम बस रुको और देखो
ये मोहल्ले में कपड़े सुखाती, बेजान दीवारें
कोई धूप में कब बाल सँवारे, जल्दी से घड़ी देखो
खनकती चूड़ियाँ, रोटी को बेले गोल करके
है दाल में, क्या लहसुन का तड़का, खुश्बूं तो देखो
अभी तक मांसाहारी शाकाहारी, का ज़माना है
बची रोटी न फेको, हो सके तो कुत्ते को देखो
अभी तक है जलन सबको, की महंगी किसकी साड़ी है
जो खबर रखनी है ज़रूरी, तो उसकी मेहरी को देखो
बड़ा पक्का सा रिश्ता है ये, की बिलकुल सास जैसा
की हम निकले जभी भी घर से, वो बोले की 'ये देखो'
मोहल्ले में कभी जब, शाम को मरता है कोई
बनेगी चाय किसी के घर, ज़रा ये भी तो देखो
है मीठा और खट्टा सा ये रिश्ता अब सभी से
मैं चाबी छोड़ जाऊ उनके घर में, 'ज़रा इसे देखो'
'सारांश' अब आ गया है वक़्त की दुनिया भी बने ऐसी
मैं देखूँ तुमको खुश रहते और तुम भी मुझको खुश देखो
© सारांश