विनय करे वसुंधरा
।। विनय करे वसुंधरा ।।
स्वार्थ का प्रवाह प्रखर।
अग्नि शर, चलाए नर।
क्यों धैर्य, धरे धरा?
दग्ध हृदया, वसुंधरा।
जल जीव, दैन्य निर्जीव।
चीत-कार करें, सजीव?
गर्भ में ना, रत्न रहा।
अश्रु बहाए, वसुंधरा।
वनस्पति अभिशप्त है।
खग-...
स्वार्थ का प्रवाह प्रखर।
अग्नि शर, चलाए नर।
क्यों धैर्य, धरे धरा?
दग्ध हृदया, वसुंधरा।
जल जीव, दैन्य निर्जीव।
चीत-कार करें, सजीव?
गर्भ में ना, रत्न रहा।
अश्रु बहाए, वसुंधरा।
वनस्पति अभिशप्त है।
खग-...