बचपन
आंखों में शरारत
दिमाग में थोड़ी सी शैतानी थी,
गांव गांव में मशहूर
हमारी बचपन की कहानी थी!
कहीं गुड्डे गुड्डी का खेल
कहीं तालाब में गोत लगाते,
खेल खेल में हम सब सखा सखी
सारा दिन बिताते!
झूला बनाते पेड़ की टहनी का
उसी पर लोट लिटाते,
गर्मियों में बाघ बगीचों से
आम तोड़ तोड़ कर खाते।
कभी किसी तोते के पीछे
कभी गैयों को चराते,
खेल खेल में मस्ती मस्ती में
पूरे गांव का चक्कर लगाते।
ना आंखों के आगे mobile
ना हाथों में किताब सुहाती,
दिन भर बस खेल कूद से
फ़ुरसत ही कहां थी मिल पाती।
कभी दौड़ लगाते
कभी बियाह रचाते,
कभी पगडंडी पर सवार हम,
पानी में कागज़ की नाव थे चलाते।
ऐसा ही था बचपन
और बचपना हमारा,
हर गली हर मकान में था
अपना ठिया ठिकाना।
हर घर में अपना था
ना कोई घर बेगाना,
अब तो आस पड़ोस भी ऐसे
जैसे महल का छुपा खजाना।।
© unnati
दिमाग में थोड़ी सी शैतानी थी,
गांव गांव में मशहूर
हमारी बचपन की कहानी थी!
कहीं गुड्डे गुड्डी का खेल
कहीं तालाब में गोत लगाते,
खेल खेल में हम सब सखा सखी
सारा दिन बिताते!
झूला बनाते पेड़ की टहनी का
उसी पर लोट लिटाते,
गर्मियों में बाघ बगीचों से
आम तोड़ तोड़ कर खाते।
कभी किसी तोते के पीछे
कभी गैयों को चराते,
खेल खेल में मस्ती मस्ती में
पूरे गांव का चक्कर लगाते।
ना आंखों के आगे mobile
ना हाथों में किताब सुहाती,
दिन भर बस खेल कूद से
फ़ुरसत ही कहां थी मिल पाती।
कभी दौड़ लगाते
कभी बियाह रचाते,
कभी पगडंडी पर सवार हम,
पानी में कागज़ की नाव थे चलाते।
ऐसा ही था बचपन
और बचपना हमारा,
हर गली हर मकान में था
अपना ठिया ठिकाना।
हर घर में अपना था
ना कोई घर बेगाना,
अब तो आस पड़ोस भी ऐसे
जैसे महल का छुपा खजाना।।
© unnati