तिजा़रात
खुदाई को तिजारात समझते है लोग
इबादत भी खरीदना चाहते है लोग...
दाम ही बन गया है चलन अच्छाई का
दिल को अब कहाँ पहचानते है लोग...
बटवारा हो रहा है कौमो का भी जात से
इन्सानियत क्या है कहाँ जानते है लोग...
तेरे नाम से चल रही है सियासत भी
तुझ से भी अब कहाँ डरते है लोग...
© संदीप देशमुख
इबादत भी खरीदना चाहते है लोग...
दाम ही बन गया है चलन अच्छाई का
दिल को अब कहाँ पहचानते है लोग...
बटवारा हो रहा है कौमो का भी जात से
इन्सानियत क्या है कहाँ जानते है लोग...
तेरे नाम से चल रही है सियासत भी
तुझ से भी अब कहाँ डरते है लोग...
© संदीप देशमुख