मैं नीरसता का दर्पण होता जा रहा हूं।🍂
पतझड़, कांटो, कंकर वाला मौसम होता जा रहा हूं।
मैं नीरसता का दर्पण होता जा रहा हूं।
हुआ सबेरा, खिला फूल, और डाल से किसी ने तोड़ लिया।
मंदिर को जाता हुआ रास्ता, शमशान की ओर है मोड़ लिया,
धीमे धीमे उस महाकाल को अर्पण होता जा रहा हूं।
मैं नीरसता का दर्पण होता जा रहा हूं।
कितने अपनो के बीच खड़ा हूं, उनको लेकिन पता नहीं।
अनजान हैं वो मेरी पीड़ा से, उनकी कोई खता नहीं।
भीतर भीतर ही कितना मैं अब...
मैं नीरसता का दर्पण होता जा रहा हूं।
हुआ सबेरा, खिला फूल, और डाल से किसी ने तोड़ लिया।
मंदिर को जाता हुआ रास्ता, शमशान की ओर है मोड़ लिया,
धीमे धीमे उस महाकाल को अर्पण होता जा रहा हूं।
मैं नीरसता का दर्पण होता जा रहा हूं।
कितने अपनो के बीच खड़ा हूं, उनको लेकिन पता नहीं।
अनजान हैं वो मेरी पीड़ा से, उनकी कोई खता नहीं।
भीतर भीतर ही कितना मैं अब...