...

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“तेरे रोने से डरती हूं”
तुझे एहसास नहीं मेरे दिल का
तू सूरज है मेरे दिन का
तुझपर ही दिन रात मरती हूं
हां तेरे रोने से डरती हूं...

कह दी कभी कोई बात मैंने
लगी हो जा कर दिल पर पैने
कभी तुझे नाराज़ किया करती हूं
लेकिन तेरे रोने पर डरती हूं...

तूझसे ही दुनिया जहान है मेरी
तू दिल का टुकड़ा नहीं पूरी जान है मेरी
हां तुझे बांटने से कतराती हूं
पर तेरे रोने से डरती हूं...

टूट न जाए कहीं तू तेरा सहारा बनूंगी
मिलता रहे तू समंदर सा तो किनारा बनूंगी
लहर बनकर तुझमें खेला करती हूं
हां तेरे रोने से आज भी डरती हूं...

डाल न सके कोई तुझपे बुरी नज़र
कम न हो अपने प्यार की उमर
हर पल तुझपर प्यार का पहरा करती हूं
मगर तेरे रोने से आज भी डरती हूं...


© ढलती_साँझ