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शीर्षक - मर्द हूँ हर पल मरता हूँ।
शीर्षक - मर्द हूँ हर पल मरता हूँ।

मुझे करके वादे अपनो से,
फ़िर वादा निभाना होता है।
भले दर्दो ने रखा हो जकड़,
फ़िर भी मुस्कुराना होता है।

ज़िम्मेदारियों के दलदल में,
रात दिन मैं ख़ूब सड़ता हूँ।
बिना रुके बिना साँस लिए,
बस मैं चलता ही चलता हूँ।

दर्द,चुभन मुझमें भी है,
पर मैं नहीं दिखाता हूँ।
नींद मुझे भी आती है,
पर मैं नहीं सो पाता हूँ।

क़ानून का भी मुझपे ज़ोर है,
समाज भी मेरे लिए कठोर है।
ग़लती भले चाहे न हो मेरी,
फ़िर भी ग़लती मैं ही करता हूँ।

हमेशा हमारा ही चरित्र ख़राब बताते,
हमेशा लोग हम पे ही उंगली...