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आत्म ज्ञान...!!
आत्म ज्ञान....!!

एक राजा को राज भोगते हुए काफी समय हो गया था ,बाल भी सफ़ेद होने लगे थे . एक दिन उसने अपने दरबार में एक उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया ।

राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि यदि वे चाहें तो नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें. सारी रात नृत्य चलता रहा ।
ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी. नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा -
*’’बहुत बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताय*
*एक पल के कारने, क्यों कलंक लग जाय ।"*

अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अलग-अलग अर्थ निकाला ,तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा. जब यह बात गुरु जी ने सुनी तो उन्होंने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने फैंक दीं ।

वही दोहा नर्तकी ने फिर पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया ।

उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।

नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा - "बस कर, एक दोहे से तुमने वैश्या होकर भी सबको लूट लिया है ।

जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - "राजा ! इसको तू वैश्या मत कह, ये तो अब मेरी गुरु बन गयी है . इसने मेरी...